मेगस्थनीज का भारत विवरण प्राचीन भारत Indica by Megasthenes free pdf in Hindi
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मेगस्थनीज (ईसा पर्व 350 -ईसा पूर्व 290) एक यूनानी राजनयिक था जब सेल्युकस ने सिमाविस्तार के लिए भारत पर आक्रमण किया तो उसे सम्राट चंद्रगुप्त से हार का सामना करना पड़ा।संधि की शर्तों के मुताबिक वह चंद्रगुप्त के दरबार मे यूनानी मंत्री सेल्युकस का राजदूत रहा था जिसने कई वर्षों तक भारत मे निवास किया।
मेगस्थनीज आरकोसिया के राज प्रतिनिधि सिवन्टीयस के साथ रहता था व राजा चंद्रकोटस भेंट करता रहता था।भारत मे रहने के दौरान उसने जो कुछ भी देख परखा उसे अपनी प्रसिद्ध पुस्तक प्राचीन भारत Indica by Megasthenes free pdf in Hindi में दर्ज किया।
तत्कालीन भारत के सामाजिक,राजनीतिक, आर्थिक ढांचे,जंगल,पहाड़,नदियों,छोटे बड़े जीव जंतुओं और पशु पक्षियों के बारे में बहुत ही रोचक विवरण किया है।पाटलिपुत्र के बारे में उसने विशेष विस्तार से वर्णन किया है।
मेगस्थनीज भारत के बारे में लिखता है की इसका आकार चतुर्भुज है
इसकी पूर्व ओर पश्चिम की सीमा महासमुद्र से बद्ध है पश्चिम सीमा इंडस नदी से बंधी है जो संसार में nile(नील)नदी के बाद सबसे बड़ी नदी है।
भारतवर्ष में अनेक विशाल पर्वत हैं जिन पर प्रत्येक प्रकार के फल देने वाले वृक्ष हैं यहाँ अनेक अटल मैदान हैं जो बहुत उर्वर हैं।यहां वर्ष में दो बार फसल होती है सभी प्रकार के जंतु पाए जाते हैं हाथियों का तो कोई ठिकाना ही नहीं है।
गंगा नदी के बारे में मेगस्थनीज कहता है कि यह उत्तरीय सीमा प्रदेश से निकलती हुए मैदानी भागों में आती है यह नदी जड़ में तीस स्टेडियम(एक स्टेडियम लगभग 606 फ़ीट) चोड़ी है जो बहती हुई दक्षिण में महासमुद्र में गिरती है। इसके अलावा भी बहुत सारी नदियां वर्षभर पूरे देश में बहती है।
मेगस्थनीज ने कार्यों के हिसाब से सात जातियों का भी उल्लेख किया है
1.दार्शनिक
2.किसान
3.ग्वाले व गड़रिए
4.शिल्पकार
5.योद्धा
6.निरीक्षक व अंतिम जाती
7.मंत्री व उपदेशक
किसानों के बारे में मेगस्थनीज बहुत रोचक बात लिखता है
की यदि कहीं युद्ध भी चल रहा हो तो बगल में खेती करने वाले किसानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता न दुश्मन ही उसके घरों या फसलों को जलाता है सभी योद्धा किसान का बहुत सम्मान करते हैं।
मेगस्थनीज ने तत्कालीन पाटलिपुत्र का बहुत ही रोचक व विस्तार से वर्णन किया है वह पाटलिपुत्र को पालिबोथा लिखता है व लिखता है की यह नगर अस्सी स्टेडियम लम्बा व पंद्रह चौड़ा है जो काठ की दीवार से घिरा है दीवार में तीर छोड़ने के लिए छिद्र भी बने हुए हैं दीवार के बाहर गर्त या खाई बनी है जिसमें नगर की नालियों का जल गिरता है।
नगर में पांच सौ सत्तर दुर्ग बने हुए हैं और चौसठ द्वार बने हैं।
पाटलिपुत्र में निवासरत जाति को यह भारतवर्ष में विख्यात बताता है जिसे यह प्रसियाई कहता है।
मेगस्थनीज प्राचीन भारत
Indica by Megasthenes free pdf in Hindi में यह कहता है कि भारत वर्ष में एक भी दास या गुलाम नहीं है सभी निवासी स्वतंत्र हैं।भारतवासी एक तिपाई पर सोने के कटोरे में चावल आदि नाना प्रकार के व्यजंन का भोजन करते हैं।
ब्राह्मणों के बारे में लिखता है की
कि वह एक कार के दर्शन होते हैं जो अपना स्वतंत्र जीवन जीते हैं प्रथम मास आग से पकाए हुए पदार्थों का भोजन नहीं करते फल खाकर ही संतोष करते हैं वह फलों को वृक्ष से तोड़ते भी नहीं किंतु जब यह गिर पड़ते हैं तब उन्हें चुनकर खाते हैं |
वह तुंगभद्रा का जल पीते हैं ब्राह्मण जीवन पर्यंत नग्न फिरते हैं वे मानते हैं कि ईश्वर ज्योति स्वरूप है किंतु आंखों से जो हम देखते हैं वैसी ज्योति वह नहीं है मैं सूर्य अथवा में अग्नि के जैसा ईश्वर को वह शब्द रूप कहते हैं|
राजा व राजप्रासाद के बारे में मेगस्थनीज लिखता है की
नगर के मध्य स्थित राजप्रासाद इतना भव्य व सुंदर है कि इसके सामने ईरानी राजप्रासाद भी कुछ नहीं है राजप्रासाद सोने चांदी की वस्तुओं और बर्तनों की चकाचौंध से भरा है ।राजा हाथी पर सोने की पालकी में बाहर निकलता है।
राजमहल उद्यानों उपवनों,तालाबों से घिरा हुआ है उद्यानों में अनेकों सुंदर सुंदर देशी विदेशी वृक्ष लगाए गए हैं वृक्ष बहुत दूर दूर से मंगाए जाते थे।उपवनों में मोर समेत असंख्य पक्षी पाले जाते हैं और तालाबों विभिन्न प्रकार की सुंदर व बड़ी बड़ी मछलियां भी पाली जाती है।
उसकी सुरक्षा का भार स्त्रियों पर रहता है
जो उनके माता पिता से क्रय की जाती है राजा झूठी गवाही देने वाले को हाथ व पैर काटने का दंड देता है या जो व्यक्ति किसी का कोई अंग काट लेता है उसका वही अंग काट देने का दंड दिया जाता है।
राजा दिन में नहीं सो सकता व सुरक्षा कारणों से रात्रि में भी जगह बदल बदल कर सोना पड़ता है।
राजा केवल युद्ध के लिए ही नहीं वह न्याय करने,यज्ञ करने व शिकार खेलने के लिए भी महल छोड़कर बाहर जाता है बाहर जाते समय सड़क दोनों तरफ रस्सी से घिरा रहता है रस्से के भीतर जाने पर स्त्री हो या पुरुष प्राणदण्ड दिया जाता है।
जनता शांतिप्रिय है चोरियां बिल्कुल नहीं होती लोग घरों को ताला तक नहीं लगाते हैं।
मेगस्थनीज कहता है कि भारत के राजा न्यायप्रिय हैं और सीमाविस्तार के लिए अनावश्यक दूसरे देशों पर हमले नहीं करते।
नागरिक कपास से बने वस्त्र पहनते हैं जिन्हें देखकर सिकन्दर के सैनिक भी दंग रह गए उन्हें यह समझने में भी समय लग की वृक्ष पर लगी ऊन से वस्त्र कैसे बनते हैं।
धनी लोग हाथी पर चलते हैं
व साधरणजन अपनी सामर्थ्यानुसार घोड़े,ऊंट या बेल गाड़ी पर चलते हैं।
शादियां बिना दहेज दिए हुए होती है लड़की शादी योग्य होने पर उसे समाज के सामने पेश किया जाता है और उचित वर जो कुश्ती करने, दौड़ने या लड़ने में स्वयं को साबित कर चुका होता है उसके साथ विवाह कर दिया जाता है।
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